लेखक….9911853902….मतीउर रहमान अज़ीज़
भारत के राजनीतिक इतिहास में मुस्लिम नेतृत्व की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है, लेकिन हाल के दशकों में कुछ तथाकथित नेताओं द्वारा अपने ही राष्ट्र के विरुद्ध षड्यंत्रों ने मुस्लिम नेतृत्व को कमज़ोर करने की कोशिश की है। ओबैदुल्लाह खान आज़मी का एक हालिया भाषण, जो फ़ेसबुक पर वायरल हुआ, इस गंभीर सच्चाई को उजागर करता है कि कैसे कुछ पाखंडी और देशद्रोही, सांप्रदायिक ताकतों से हाथ मिलाकर, मुस्लिम नेतृत्व को नुकसान पहुँचा रहे हैं और लोकतांत्रिक दलों की धर्मनिरपेक्ष नींव को कमज़ोर कर रहे हैं। यह लेख ओबैदुल्लाह खान आज़मी के उसी भाषण के मुख्य बिंदुओं के आलोक में मुस्लिम नेतृत्व के विरुद्ध षड्यंत्रों, विशेष रूप से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और उसके प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की विवादास्पद और नकारात्मक भूमिका पर प्रकाश डालता है।
ओबैदुल्लाह खान आज़मी ने अपने भाषण में साफ़ किया कि देश के कुछ गद्दारों ने देश के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के प्रमुख मुस्लिम नेताओं को निशाना बनाया। उन्होंने मुंबई के पूर्व गृह मंत्री आरिफ नसीम खान का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्हें सिर्फ़ 428 वोटों से इसलिए हराया गया क्योंकि वे मुस्लिम नेतृत्व के एक चमकते सितारे थे। आरिफ नसीम खान जैसे नेताओं को हराने के लिए, देश के गद्दारों ने सांप्रदायिक ताकतों के साथ मिलकर एक सुनियोजित रणनीति अपनाई। आज़मी के अनुसार, इन गद्दारों ने हर उस निर्वाचन क्षेत्र में अपने उम्मीदवार उतारे जहाँ से मुस्लिम नेतृत्व उभर रहा था या जहाँ से राष्ट्र की आवाज़ बुलंद हो रही थी। नतीजतन, मुस्लिम वोट बंट गए और सांप्रदायिक ताकतों को जीत हासिल हुई। यह साज़िश सिर्फ़ आरिफ नसीम खान तक ही सीमित नहीं थी। आज़मी ने ज़ोर देकर कहा कि जहाँ भी मुस्लिम नेता अपने राष्ट्र के अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे थे, इन गद्दारों ने 24-24 उम्मीदवार उतारकर वोटों का बंटवारा सुनिश्चित किया। उन्होंने नफ़रत भरे भाषणों के ज़रिए धर्मनिरपेक्ष बहुसंख्यक समुदाय को एक सांप्रदायिक मंच पर ला खड़ा किया, जिससे धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों को नुकसान हुआ। ओबैदुल्लाह खान आज़मी ने अपने भाषण में यह भी खुलासा किया कि इन तथाकथित मुस्लिम नेताओं को लोकतंत्र समर्थक दलों में मुस्लिम नेताओं को कमज़ोर करने के लिए "पिछले दरवाजे” से आर्थिक मदद दी जाती है। यह आर्थिक मदद इन गद्दारों को मुस्लिम नेतृत्व को पनपने से रोकने और उनकी आवाज़ दबाने के लिए दी जाती है। आज़मी ने इसे एक गहरी साज़िश का हिस्सा बताया, जिसका उद्देश्य मुस्लिम राष्ट्र को राजनीतिक रूप से कमज़ोर करना और उनके अधिकारों के संघर्ष को विफल करना है।
आज़मी के भाषण में एक महत्वपूर्ण बिंदु दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस का ज़िक्र है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि असदुद्दीन ओवैसी सुबह 3 बजे भाजपा के शीर्ष नेता अमित शाह से मिलते हैं। केजरीवाल के अनुसार, इस बैठक में ओवैसी को बिहार चुनाव में उन सीटों पर उम्मीदवार उतारने का निर्देश दिया जाता है जहाँ मुस्लिम वोट निर्णायक होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम वोटों को बाँटना और सांप्रदायिक ताकतों को जीत दिलाना है। आज़मी ने असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम को "देश के गद्दार” और "कुर्दोग्लू की औलाद” जैसे कठोर शब्दों से नवाज़ा। उन्होंने कहा कि ओवैसी और उनके समर्थक उन जगहों पर उम्मीदवार उतारते हैं जहाँ मुस्लिम नेतृत्व मज़बूत हो रहा है। यह रणनीति न केवल धर्मनिरपेक्ष दलों को कमज़ोर करती है, बल्कि मुस्लिम वोटों को बाँटकर सांप्रदायिक दलों को भी मज़बूत करती है। आज़मी ने इसे देश की पीठ में छुरा घोंपने जैसा एक हथकंडा बताया। आज़मी ने अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण बात उठाई कि मुस्लिम राष्ट्र को बाहरी लोगों से उतना ख़तरा नहीं है जितना "आंतरिक दुश्मनों” से। उन्होंने कहा कि ये देशद्रोही, जो ख़ुद को मुस्लिम नेता कहते हैं, असल में देश के दुश्मन हैं। ये लोग अपने निजी स्वार्थों और आर्थिक फ़ायदों के लिए सांप्रदायिक ताक़तों के हाथों में खेलते हैं और अपने ही देश की मज़बूत आवाज़ को दबा देते हैं। ये लोग न सिर्फ़ मुस्लिम नेतृत्व को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को भी कमज़ोर करते हैं।
ओबैदुल्लाह ख़ान आज़मी के भाषण से साफ़ संदेश जाता है कि मुस्लिम राष्ट्र को अपने नेतृत्व की रक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमें उन गद्दारों का पर्दाफ़ाश करना चाहिए जो राष्ट्र के नाम पर राजनीति करते हैं, लेकिन असल में सांप्रदायिक एजेंडे का समर्थन करते हैं। मुस्लिम राष्ट्र को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होना चाहिए और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में विश्वास रखने वाले राजनीतिक दलों का समर्थन करना चाहिए। आज़मी ने आरिफ नसीम खान जैसे नेताओं का उदाहरण दिया, जो न केवल मुस्लिम राष्ट्र, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सशक्त आवाज़ हैं। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे नेतृत्व को मज़बूत करना होगा और पैसे के लिए राष्ट्र के हितों को बेचने वाले गद्दारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी होगी। ओबैदुल्लाह खान आज़मी का भाषण भारत के मुस्लिम समाज के लिए चिंतन का क्षण है। यह भाषण हमें बताता है कि राष्ट्र के भीतर मौजूद गद्दारों ने न केवल मुस्लिम नेतृत्व को कमज़ोर किया है, बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को भी ख़तरे में डाल दिया है। इस संदर्भ में असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम की भूमिका बेहद विवादास्पद है, क्योंकि उन पर मुस्लिम वोटों को विभाजित करने के लिए सांप्रदायिक ताकतों के साथ मिलीभगत करने का आरोप है। अब समय आ गया है कि मुस्लिम राष्ट्र अपने असली दुश्मनों को पहचाने और एक मज़बूत, एकजुट और धर्मनिरपेक्ष नेतृत्व के लिए संघर्ष करे। क्या हम अपने राष्ट्र के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इन गद्दारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँगे?