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संसद धुंआ कांड को कैसे देखें

अवधेश


संसद के अंदर और  बाहर की घटना ने पूरे देश को विस्मित किया है। संसद में लोकसभा के अंदर दो व्यक्तियों का कूदना, परिसर के बाहर नारा लगाना, पीली धुएं छोड़ना निश्चित रूप से चिंता का विषय है। लोकसभा में दर्शक दीर्घा से कूदने वाले सागर शर्मा और मनोरंजन डी तथा बाहर परिवहन भवन के सामने नारा लगाने वाले अमोल शिंदे और नीलम आजाद सबके पास एक ही प्रकार का रंगीन स्मोक था। हालांकि इन सबके बीच संबंध था और इस कारण तारतम्यता भी, लेकिन बाहर सड़क पर परिवहन भवन के सामने कोई भी खड़ा होगा, नारा लगाएगा या  धुआं छोड़ सकता है। उसे सुरक्षा चूक नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह खुली जगह है। अंदर की घटना को सुरक्षा चूक कहने में इसलिए हर्ज नहीं है क्योंकि सागर और मनोरंजन जूते में छुपा कर कलर स्मोक क्रैकर लेकर चले गए और हल्के पीले रंग की गैस छोड़ कर डर पैदा कर दिया। छह आरोपी बनाए गए हैं जिनमें से पांच पकड़े जा चुके हैं। केंद्रीय लोकसभा सचिवालय के अनुरोध पर गृह मंत्रालय ने घटना की जांच का आदेश दे दिया है। सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल सिंह की अध्यक्षता वाली जांच समिति में सुरक्षा एजेंसिंयों के सदस्य और विशेषज्ञ शामिल होंगे। तो अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करनी चाहिए। किंतु यह ऐसी घटना नहीं है जिसकी अनदेखी की जाए या जिसको हल्का मान लिया जाए। वास्तव में इसके कई पहलू हैं जिनकी गंभीरता से विवेचना होनी चाहिए।

दुर्भाग्य से गंभीर मामलों को भी जब राजनीति का शिकार बनने की कोशिश होती है तो उसकी आवश्यक गंभीर विवेचना कम से कम आम लोगों के बीच उस तरह से नहीं हो पाती जैसी होनी चाहिए। संसद में आने–जाने वाले जानते हैं कि वहां किस तरह की तीन स्तरीय और बाहर को मिला दें तो चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है। इन पर चर्चा आगे करेंगे, पहले घटना से जुड़े मुख्य पहलुओं को देखें। अमोल महाराष्ट्र के लातूर का और नीलम हरियाणा के जींद की, सागर उन्नाव का और मनोरंजन मैसूर का रहने वाला है। इन चारों में इतने संबंध कैसे हुए कि उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से समन्वित और सावधानीपूर्वक अपने कारनामों को अंजाम दिया। इनकी सुनियोजित होने का पता इससे भी चलता है कि नीलम द्वारा नारा लगाते और अमोल के धुआं छोड़ते एक ललित झा वीडियो बना रहा था और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड भी किया।  वह एक एनजीओ से जुड़ा है और उसकी जांच आवश्यक है।

घटना पूरी तरह योजनाबद्ध थी इसीलिए जब दर्शक दीर्घा से सागर और मनोरंजन सत्ता पक्ष की ओर कूदता है उसी समय बाहर नीलम और अमोल नारा लगाते हुए आगे बढ़े और धुआं भी छोड़ा। ये छह पास चाहते थे लेकिन इन्हें दो ही मिल सका। अभी तक की जानकारी के अनुसार संसद आने से पहले यह सब गुरुग्राम में विक्रम शर्मा के घर पर रुके थे। आजकल इंटरनेट और सोशल मीडिया के जमाने में एक दूसरे से संपर्क होना कठिन नहीं है। लेकिन यह सब एक दूसरे से इतनी जुड़ गए और इन्होंने इस तरह की योजना बना लिया और पूरा किया तो स्वाभाविक ही इसकी गहराई से जांच करनी होगी कि क्या सब कुछ इन्होंने ही किया या उनके पीछे और भी हैं ,जिनने भी किया उनका उद्देश्य क्या था?  बेरोजगारी या तानाशाही आदि का नारा लगाने के लिए संसद से कूद कर भय पैदा करने की आवश्यकता नहीं थी। वैसे भी संसद हमले की वार्षिकी पर ऐसा करने वाला सकारात्मक सोच का आंदोलनकारी नहीं हो सकता । 13 दिसंबर, 2001 को भीषण जिहादी आतंकवादी हमले ने पूरे देश को हिला दिया था। उच्चतम न्यायालय के फैसलों से साफ है कि उसका षड्यंत्र पाकिस्तान में रचा गया था जिसके पीछे मसूद अजहर का जोश ए मोहम्मद  तथा लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन थे। भारत में भी जेहादी आतंकवाद की सोच से प्रभावित अफजल गुरु और उसके साथी इसमें संलिपप्त थे। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर एस आर गिलानी पर भी आरोप लगा किंतु वह पर्याप्त सबूतों के अभाव में रिहा हो गए। वह हमला संपूर्ण विश्व में जारी अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आतंकवाद का एक अंग था। उसके पहले 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के न्यूयॉर्क एवं वाशिंगटन में वर्ल्ड ट्रेड टावर से लेकर पेंटागन पर हमले हो चुके थे और संपूर्ण दुनिया हिली हुई थी। अगर किसी को देश में बेरोजगारों के लिए महिलाओं के लिए आवाज उठानी है या वह बेहतर लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहता है तो कम से कम आतंकवादी हमले के दिन से स्वयं को नहीं जोड़ेगा।  यह देखना होगा कि उनके मस्तिष्क में ऐसी बात आई क्यों? जय भीम जय भारत के नारे का यहां अर्थ क्या है? यह सब भगत सिंह के नाम से बने संगठन से जुड़े बताए जा रहे हैं। भगत सिंह को आदर्श मानने वाले इस तरह आतंकवादी हमले के दिवस से स्वयं को किसी सूरत में संबंधित  नहीं कर सकते।

जैसा हम जानते हैं सदन के भीतर कोई दर्शक तभी जा सकता है जब किसी सांसद की सिफारिश हो। इसके लिए विजिटर फार्म होता है जिसमें पूरी जानकारी भरनी होती है और उसमें संसद को हस्ताक्षर करना होता है। संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था पहले से ही मजबूत है। प्रत्येक सत्र के पहले सुरक्षा एजेंसियां सुरक्षा समीक्षा करती है। तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है। परिसर के बाहर दिल्ली पुलिस का सुरक्षा प्रबंध है और अंदर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की जिम्मेवारी रहती है। मुख्य भवन की सुरक्षा पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस यानी संसद सुरक्षा सेवा के पास होती है। यह पूरे परिसर पर दृष्टि रखती है। परिसर में प्रवेश करने से पहले विजिटर को कई चरणों की जांच से गुजरना पड़ता है। संसद के दोनों सदनों में दर्शकों के लिए दीर्घा है।  पास बनाने के लिए संबंधित व्यक्ति को सांसद का पत्र और आधार कार्ड या कोई दूसरा पहचान पत्र देना होता है। रिसेप्शन पर विजिटर की जांच की जाती है। सही पाए जाने पर फोटो पहचान पत्र बनता है। मोबाइल फोन रिसेप्शन पर ही रखवा लिया जाता है। वहां से लोकसभा में और दर्शक दीर्घा में जाने तक तीन जांच होती है। आप कलम तक अंदर नहीं ले जा सकते।‌ पहले विजिटर को पास एक घंटे के लिए दिया जाता था लेकिन बाद में 45 मिनट कर दिया गया। इन्होंने पहली पंक्ति में ही अपने लिए बैठने की व्यवस्था की। जब पीछे के दर्शकों का समय पूरा हुआ, वो जाने लगे तब इनमें से एक अंदर कूदा, दूसरा लटकाऔर फिर जो कुछ हुआ वह सामने आ चुका है। यह सोचने की बात है कि कई महीनो से मनोरंजन भाजपा के सांसद प्रताप सिम्हा के यहां ही पास के लिए क्यों दौड़ लगा रहा था? क्या यह साबित करना था कि भाजपा के सांसद के पास से ही संसद के अंदर ऐसी घटना हुई? मनोरंजन के पिता दक्षिण मैसूर के सांसद प्रताप सिम्हा के परिचित हैं।

 पिछले कुछ समय में खासकर शाहीनबाग धरना के समय से कृषि कानून विरोधी धरना और फिर जंतर- मंतर पर पहलवानों के धरने तक नरेंद्र मोदी सरकार के विरोधियों ने देश का वातावरण ऐसा बना दिया और ऐसी भयानक मानसिकता भी निर्मित कर दी जिसमें बहुत बड़े समूह को ऐसा लगता है कि इस सरकार को किसी तरह बदनाम करना, कमजोर करना, लोगों के अंदर यह भाव फैलाना कि उनके कार्यकाल में देश असुरक्षित है आदि हमारा सर्वोपरि कार्य  है। नीलम इन सभी धरनों में शामिल थी और उसके संपर्क उनके नेताओं से हैं तभी तो जींद में किसानों का एक बड़ा समूह पहुंच गया यह कहते हुए कि उसे रिहा किया जाए। जरा सोचिए,  वातावरण कितना विकृत है कि वैश्विक जेहादी आतंकवाद के हमले के दिन यह सब अपना तथाकथित विरोध प्रकट करने का दिन चुनते हैं और कोई इसकी आलोचना नहीं करता। विपक्ष ने पहले दिन से ही नई संसद भवन को असुरक्षित और अनुपयुक्त साबित करने का अभियान चलाया है। धुआं कांड के बाद समूचे विपक्ष का स्वर एक ही है कि सारे सांसदों और यहां के कर्मचारियों की जिंदगी को असुरक्षित कर दिया गया है। अगर विपक्ष के लोग भी हमले की उसी आक्रामकता से निंदा करते जिस तरह सरकार की कर रहे हैं तो लगता कि वाकई इनके अंदर संसद भवन से लेकर अन्य तरह की सुरक्षा की चिंता है । अधीर रंजन चौधरी कह रहे हैं कि इन लोगों ने देश की असलियत को सामने ला दिया है। ऐसे बयानों से इन लोगों का ही हौसला बढ़ेगा। कोई उनकी इस बात के लिए भी निंदा नहीं कर रहा है कि संसद पर आतंकवादी हमले जैसे भयानक दिवस को चुनना ही आतंकवाद को समर्थन देना और इस नाते देश विरोधी कार्य है। पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद निस्संदेह आने वाले समय में इसके पीछे का षड्यंत्र सामने आएगा। ऐसा माहौल न बना दिया जाए कि आम लोगों को दर्शक के रूप में भी संसद भवन को देखने के रास्ते बंद हो जाए। किसी एक घटना का तात्पर्य नहीं कि सारे दर्शक संदिग्ध ही होंगे। सुरक्षा मजबूत करिए और उसके साथ-साथ देश का वातावरण ऐसा बनाइए कि पक्ष और विपक्ष की लड़ाई लोकतांत्रिक सहमति और असहमति की हो नफरत और दुश्मनी की नहीं। नफरत और दुश्मनी की राजनीति से ही इस तरह की भयानक घटनाओं की पुनरावृति होती है।

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