Articles مضامین

मेरे पिता – मौलाना मसऊद अहमद मजहर साहब की याद में (बेटे की ओर से – मुबश्शिर मसऊद)

अस्सलामु अलैकुम।

मैं आज आप सबके सामने अपने प्यारे अब्बू की याद में कुछ बातें कहना चाहता हूँ।
अब्बू, यानी मौलाना मसऊद अहमद मजहर साहब, सिर्फ़ मेरे पिता होने के साथ साथ, एक सच्चे इंसान, अच्छे शिक्षक और नेकदिल शख्स भी थे। उनका जन्म 1 जून 1959 को ग्राम- टिकरिया, पोस्ट-कुस्मही, थाना-डुमरियागंज, जिला- सिद्धार्थनगर में हुआ था। आपके वालिद का नाम श्री अब्दुल गफूर साहब था। आपके एक भाइ थे। आपके बडे भाई डा. महमूद अहमद साहब भी एक बहुत ही जिम्मेदार और ईमानदार शख्सियत थे। उन्होंने मदरसा अरबिया मिफ्ताहुल उलूम, टिकरिया के प्रबंधक के रूप में वर्षों तक सेवा की, और पूरी ईमानदारी व निष्ठा से इस संस्थान को चलाया। बड़े भाई का दिल बहुत बड़ा था उन्होंने पूरी जिंदगी में कभी भी किसी मरीज से कभी पैसा नहीं मांगे और ना ही कभी भी दबाव डालें। बड़े भाइ ने मेरे अब्बू को साथ में इल्म और ईमान की रौशनी को फैलाने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। अब्बू ने अपनी तालीम मदरसा सलफिया, वाराणसी से पूरी की। जहाँ से उन्हें इस्लामी तालीम, अरबी, उर्दू और इंसानियत की समझ मिली। "तालीम पूरी करने के बाद लगभग 1 साल तक कृषि विभाग में नोकरी की”। "मेरे पिता टिकरिया के मौलाना अज़ीज़ुर्रहमान सल्फी साहब के बहुत अच्छे दोस्त थे। जब वो वराणसी गए, तो मौलाना साहब के साथ एक ही घर के सदस्य की तरह रहे। मौलाना साहब ने ही उन्हें वहाँ नौकरी दिलाने में मदद की। उन्हीं की कोशिश से मेरे पिता को 15 सितम्बर 1981 को मदरसा जामिया रहमानिया, वाराणसी में नौकरी मिली। ये उनके जीवन का एक अहम मौका था, जो मौलाना साहब की मदद से पूरा हुआ ।”15 सितम्बर 1981 को आपने मदरसा जामिया रहमानिया, वाराणसी में शिक्षक के रूप में सेवा शुरू की।
18 जुलाई 1988 को आपका तबादला मदरसा मिफ्ताहुल उलूम, टिकरिया, डुमरियागंज (सिद्धार्थनगर) में हुआ।

यहाँ आपने दो विभागों में पढ़ाया:

फौकानिया विभाग: 15-09-1981 से 27-10-2003 तक

आलिया विभाग: 28-10-2003 से 08-10-2011 तक

पूरे 30 वर्षों तक आपने शिक्षा को इबादत समझकर निभाया।
आप समय के पाबंद, मेहनती और सच्चे इंसान थे।
हर कोई आपकी नम्रता, व्यवहार और इल्म से प्रभावित होता था।

आपने अपने पीछे एक प्यारा और नेक परिवार छोड़ा:

पत्नी: फातिमा खातून

तीन बेटे:

मुबश्शिर मसऊद (मैं स्वयं)

मुसद्दिक मसऊद

मुदब्बिर मसऊद

चार बेटियाँ

इस तरह परिवार के कुल सदस्य 9 हैं।
अब्बू ने सबको दुआओं, मेहनत और सलीके से पाला। जीवन के आख़िरी वर्षों में अब्बू को किडनी की बीमारी हो गई थी।
उन्हें लखनऊ में डायलिसिस कराना पड़ता था। लेकिन उन्होंने हमेशा सब्र और शुक्र के साथ ज़िंदगी गुज़ारी। फिर 08 अक्टूबर 2011, दोपहर 1:35 बजे, अब्बू ने अपने घर पर ही आख़िरी सांस ली। उनका इंतकाल बहुत ही सुकून और ईमानदारी भरे हाल में हुआ।

आज हम सब एक साथ दुआ करते हैं: "या अल्लाह! मेरे अब्बू को माफ़ कर, उनकी मग़फिरत कर, उनकी क़ब्र को रौशनी से भर दे, और उन्हें जन्नतुल फिरदौस में ऊँचा दर्जा अता फरमा।”

"इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन”

आपका बेटा – मुबश्शिर मसऊद

Related posts

حافظ سعید الرحمن عزیز سلفی کا کتاب ”ہندوستان میں سلطنت مغلیہ کا دور “ پر تبصرہ

Paigam Madre Watan

ایکس مسلم

Paigam Madre Watan

How can the foe of Allah and His Messenger dare to show even a hint of sympathy towards Muslims

Paigam Madre Watan

Leave a Comment

türkiye nin en iyi reklam ajansları türkiye nin en iyi ajansları istanbul un en iyi reklam ajansları türkiye nin en ünlü reklam ajansları türkiyenin en büyük reklam ajansları istanbul daki reklam ajansları türkiye nin en büyük reklam ajansları türkiye reklam ajansları en büyük ajanslar