अवधेश कुमार
तत्काल मणिपुर में शांति और सामान्य होती स्थिति पूरे देश को राहत देने वाला है। मेें मणिपुर की सामान्य होती स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मणिपुर यात्रा के दौरान आम लोगों की लाइव दिखती प्रतिक्रियाएं बता रहीं थीं कि प्रदेश के हालात कितने बदल चुके हैं। कूकी और मैतेयी दोनों की प्रतिक्रियाएं उम्मीद पैदा करने वाली हैं । कोई कह रहा था कि अब यहां गोलीबारी नहीं है, शांति है, इसीलिए हम प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करने आए हैं तो कोई यह कि शांति के बाद ही भविष्य के लिए द्वार खुलेंगे। कूकी समुदाय के एक व्यक्ति ने कहा कि बंकर अभी भी हैं, लेकिन हमारे लड़के और घर के पुरुष अपनी सामान्य ज़िंदगी में लौट चुके हैं। हम शांति चाहते हैं, कोई हमेशा लड़ाई नहीं चाहता संघर्ष खत्म हो गया है। इनके आधार पर निष्कर्ष निकाला जाए तो कहना पड़ेगा किप्रदेश में शांति स्थापित होने के साथ विकास और स्थिर राजनीतिक प्रक्रिया पुनः आरंभ होने की आधारभूमि बलवती होती दिख रही है। प्रधानमंत्री के अब तक मणिपुर न जाने के पीछे मुख्य उद्देश्य यही था कि स्थिति इतनी संभाल ली जाए ताकि वहां उतरने का स्पष्ट परिणामकारी संदेश जाए। प्रधानमंत्री जब इंफाल हवाई अड्डे पर उतरे, तो भारी बारिश के कारण हेलीकॉप्टर से चुराचांदपुर जाना संभव नहीं था। यह आशंका भी पैदा हुई कि शायद कार्यक्रम रद्द हो जाए। उन्होंने सड़क से चुराचंदपुर का निर्धारित कार्यक्रम पूरा किया तथा विस्थापित लोगों से मुलाकात की। यह इस मायने में अच्छा हुआ कि देश और दुनिया ने मणिपुर के बदलाव को स्पष्ट देखा। कुछ महीने पूर्व की स्थिति से तुलना करें तो चुराचंदपुर सड़क से जाने और सामान्य तरीके से कार्यक्रम करने की कल्पना नहीं की जा सकती थी। मणिपुर की दृष्टि से प्रधानमंत्री की सभा में भारी संख्या में लोगों की उपस्थिति भी बता रही थी कि माहौल बदला है। चुराचंदपुर कूकी बहुल इलाका है जबकि इंफाल और उसके आसपास मैतेयी ज्यादा हैं। प्रधानमंत्री के दोनों क्षेत्रों में जाने तथा विकास परियोजनाएं आरंभ करने का संदेश यही है कि सरकार के लिए दोनों समुदाय समान हैं। दुष्प्रचार यह था कि भाजपा सरकार मैतेयी के साथ है। चुराचंदपुर में ही 3 मई 2023 को सबसे पहले हिंसा भड़की थी। वहीं से महिला को निर्वस्त्र करने का वीभत्स दृश्य सामने आया था।
तो ऐसी आशाजनक तस्वीर तथा लोगों के सामूहिक मनोविज्ञान में आया सकारात्मक बदलाव यूं ही नहीं हुआ। सरकार लगातार एक ओर आंतरिक एवं सीमा पर व्यवहारिक सुरक्षात्मक कदम उठा रही थी तो अंदर दोनों पक्षों के समूहों के साथ संपर्क संवाद भी किसी न किसी तरह चलते रहे। दोनों पक्षों के प्रबुद्ध नागरिक समाज, एनजीओ,एक्टिविस्ट आदि के अनेक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली बुलाए गए तथा मणिपुर में भी बातचीत होती रही। इसी का परिणाम पिछले 4 सितंबर को दिल्ली में हुआ त्रिपक्षीय समझौता था। सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स या युद्धविराम समझौता पर केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार और कुकी-जो विद्रोही समूहों के दो संगठनों ने हस्ताक्षर किए हैं। इसका एक मुख्य प्रावधान हिंसा आरंभ होने के बाद से बंद नेशनल हाईवे-2 को खोलने पर बनी सहमति है। इसे मणिपुर की जीवन रेखा माना जाता है जो नागालैंड के व्यापारिक शहर दीमापुर को राजधानी इंफाल से जोड़ता है। राज्य को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वैसे इसे खोलने पर कुकी समूहों से कई बार बात हुई और सहमति भी बनी, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले मार्च में ही इसे खोलने की घोषणा किया, लेकिन कूकी संगठनों ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
वस्तुत: प्रदेश के दो समुदाय एक दूसरे के बीच आपसी संवाद समाप्तप्राय हो तथा देशी – विदेशी शक्तियां भड़काकर हथियार बंद संघर्ष तक ले जाएं तो बातचीत ही दुष्कर होता है। कल्पना की जा सकती है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एवं उनके मंत्रालय को किन स्थितियों का लगातार सामना करना पड़ा होगा। विरोधी जो भी कहे, हमें नहीं भूलना चाहिए संघर्ष आरंभ होने के शुरुआती दिनों में ही गृह मंत्री ने दौरा किया था। उसके पहले से गृह मंत्रालय के अनेक अधिकारियों ने वहां डेरा डाला था। खैर, आशा करनी चाहिए समझौते में कुकी उग्रवादियों के खिलाफ एक साल तक सैन्य अभियान रोकने पर बनी सहमति कायम रहेगी। यह समझौता पहले भी था लेकिन विरोधी शक्तियों से प्रभावित हथियारबंद समूहों द्वारा हिंसा जारी रखने के कारण इसे निलंबित करना पड़ा। समझौते में कुछ नयी शर्तें जोड़ी गईं हैं, जिनमें कड़ी निगरानी के साथ उल्लंघन की स्थिति में समीक्षा शामिल है। इसका अर्थ हुआ कि सरकार न्यायसंगत मांगे और अपेक्षाएं स्वीकार करती हैं लेकिन हिंसा बिल्कुल नहीं। आप हिंसा करेंगे तो कार्रवाई होगी।
हालांकि खासकर पूर्वोत्तर के संघर्षरत पक्षों को शांति समझौते तक लाना हमेशा अत्यंत कठिन रहा है। भाजपा ने आरंभ में वीरेन सिंह के पक्ष में दृढ़ता अपनाया किंतु जब लगा कि इसके बगैर कूकी समूहों को विश्वास में लेना संभव नहीं तो तो उनका त्यागपत्र स्वीकार किया गया। हालांकि विधानसभा में नेशनल पीपल्स पार्टी ने समर्थन भी वापस ले लिया था। वीरेन सिंह मैतेयु समुदाय से आते हैं। सरकार का आरंभिक पक्ष यही था कि हमारे लिए मैतेयी और कुकी दोनों समान है इसलिए इस आधार पर किसी नेता को नहीं हटाया जा सकता। देश की एकता अखंडता, हिंसक संघर्ष रोकने तथा देश विरोधी शक्तियों को स्थिति का लाभ उठाने से रोकने के लिए यह करना अपरिहार्य हो गया था।
बहरहाल, मणिपुर में 20 मई 2023 से शुरू हिंसा थम गयी है, गोलीबारी बंद है, बंकरों में रहने वाले सामान्य दिनचर्या में दिख रहे हैं, युवा कॉलेज और यूनिवर्सिटी का रुख करने लगे हैं। तो दो वर्ष 4 महीने बाद मणिपुर सामान्य और शांत दिख रहा है। हालांकि कूकी और मैतेयी समुदायों के बीच खाई पाटना आसान नहीं है। चुराचंदपुर के लोग भय और आशंकाओं के कारण इम्फाल घाटी नहीं जा रहे हैं तो इम्फाल में रहने वाले मैतैयी भी चुराचंदपुर या कांगपोकपी के पहाड़ी जिलों की यात्रा नहीं कर पा रहे। बिशनुपुर जिला और पास के पहाड़ी क्षेत्र हिंसा के बाद बफर ज़ोन बन गए हैं और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा वहां सुरक्षा दी जा रही है। न कुकी-जोमी या पहाड़ी जनजाति के लोग घाटी में प्रवेश कर रहे हैं, न ही घाटी में रहने वाले मैतेयी समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में जा रहे हैं। हजारों विस्थापित अभी भी राहत शिविरों में हैं। नेशनल हाईवे खुलने के बावजूद बफर ज़ोन को पार करना बाहरी व्यक्ति के लिए स्वाभाविक ही मुश्किल है। सुरक्षा एजेंसियां पहचान के बगैर सब स्वतंत्र आवागमन की अभी अनुमति नहीं दे सकती है।
किंतु यह सब बिल्कुल अस्वाभाविक नहीं। वर्तमान समझौते में मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने की प्रतिबद्धता शामिल है। यह कूकी समूहों की अलग प्रशासन की मांग में बदलाव का संकेत है। मैतेयी समूह अलग प्रशासन की मांग का विरोध करते रहे हैं। हालांकि सभी कूकी समूहों को इससे सहमत कराना कठिन है। समझौते पर हस्ताक्षर होने के कुछ ही समय
बाद, सिविल सोसायटी समूह कुकी-जो काउंसिल (KZC) ने भारतीय संविधान के तहत एक अलग प्रशासन के लिए राजनीतिक बातचीत की आशा का वक्तव्य दिया। ऐसा कहने वाले मिल जाएंगे कि जब तक वित्त और प्रशासन का नियंत्रण घाटी के लोगों के पास रहेगा, पहाड़ी ज़िलों के विकास की अनदेखी होगी। सामूहिक आकांक्षाओं के अनुभव विकास योजनाएं वहां क्रियान्वित हुई तो धीरे-धीरे यह मानस भी बदलेगा।
प्रधानमंत्री ने अपने स्वभाव के अनुरूप मणिपुर के वीर बलिदानियों के स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अभी तक के योगदान की याद दिलाई। ऑपरेशन सिंदूर में वीरगति प्राप्त दीपक चिंगाखाम को श्रद्धांजलि देना एक राष्ट्र के रूप में भारत के प्रति संवेदनशील होने की ही अपील थी। उन्होंने जब जानकारी दी कि अंडमान-निकोबार के माउंट हैरियट का नाम बदलकर ‘माउंट मणिपुर’ रखा गया है और यह निर्णय 140 करोड़ भारतीयों की ओर से मणिपुरी स्वतंत्रता सेनानियों को एक सच्ची श्रद्धांजलि है तो लोगों ने करतल ध्वनि से इसका स्वागत किया। आजाद हिंद फौज ने मणिपुर में ही स्वतंत्रता का पहला झंडा गाड़ा था और नेताजी सुभाष बोस ने मणिपुर को भारत की स्वतंत्रता का द्वार कहा था। जैसा प्रधानमंत्री ने कहा दोनों समुदाय आपस में मेल-जोल बढ़ाएं तभी मणिपुर की शांति और विकास का सपना पूरा होगा। प्रधानमंत्री की इन पंक्तियों को देखिए,, ‘किसी भी स्थान पर शांति की स्थापना बेहद जरूरी है। बीते 11 वर्षों में अनेक संघर्ष खत्म हुये हैं। उम्मीद और विश्वास की सुबह दस्तक दे रही है। बीते कुछ सालों में यहां के लोगों ने विकास को प्राथमिकता दी है। मुझे विश्वास है कि आगे भी विकास को और बल मिलेगा। मैं सभी संगठनों से अपील करूंगा कि शांति के रास्ते पर आगे बढ़कर अपने सपनों को पूरा करें, अपने बच्चों के भविष्य को सुनिश्चित करें. मैं आपके साथ हूं.’